नेत्र रोग विशेषज्ञ की

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नमस्कार, मेरे नाम का प्रत्युषा है!


नेत्र विज्ञान न केवल मेरा पेशा है, बल्कि मुझे इसमें बहुत ही दिलचस्पी है. इसलिए मैंने अपना पूरा जीवन नेत्र रोगों के उपचार के साथ-साथ उनके कारणों को खोजने में समर्पित कर दिया.

आज मैं आंखों के छिपे हुए दुश्मनों पर चर्चा करना चाहती हूँ - स्क्रीन, मॉनिटर, डिस्प्ले, जो कि हमारे जीवन और काम के अभिन्न पहलु बन गए हैं. आइए हम जरा २०१५-२०१६ के भारतीय नागरिकों के आंकड़ों पर एक नज़र डालते हैं. हमारे सामने आंकड़ों की एक भयावह तस्वीर आती है: हमारे देश के लोगों की दृष्टि बहुत तेजी से बिगड़ रही है.

डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, हाल के वर्षों में सभी आधुनिक विकसित देशों में दृष्टि की समस्या वाले लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है. अगर हम इस पर कोई कठोर कदम नहीं उठाएंगे, तो अगले एक दशक में ७०% से अधिक भारतीय आबादी दृष्टि विकारों से पीड़ित होगी.



स्मार्टफोन, टैबलेट और कंप्यूटर स्क्रीन पर लगातार टकटकी लगाकर देखने के कारण आंखों पर दबाब बढ़ता है.

मानव आंखों में मांसपेशियां होती हैं जो इसकी कार्यवाही को बढ़ावा देती हैं. यदि आप लंबे समय तक अपनी आँखें को किसी एक बिंदु पर लगा देते हैं (स्क्रीन पर टकटकी लगाकर, या फोन पर), तो ये मांसपेशियां थक जाती हैं. हालांकि, मांसपेशियों की अत्यधिक गतिविधि दृष्टि सम्बंधित समस्याओं का मुख्य कारण नहीं है.

दृष्टि विकारों का प्रमुख प्रतिकूल कारक प्रकाशीय विकिरण है.

केवल सौर विकिरण ही ही नहीं, बल्कि स्क्रीन और मॉनिटर जैसे कृत्रिम स्रोतों से आने वाला विकिरण भी आँखों के लिए हानिकारक होता है. ऐसे प्रकाश स्रोतों के साथ दीर्घकालिक सम्बन्ध होने से रेटिना को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यदि आपको याद हो कि हम अपने जीवन का कितना समय सड़कों पर व्यतीत करते हैं, तनाव और खराब वातावरण से पीड़ित रहते हैं, तो ये सभी कारक आसानी से एक दृष्टि हानि को पैदा करते हैं.



आपकी आँखों को मदद की ज़रूरत है!

जैसा कि यह आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारतीयों की दृष्टि तेजी से ख़राब हो रही है. इसके बारे में कुछ करने की जरूरत है! जैसा कि मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, उसमे ज्यादातर डॉक्टर्स आपको अपनी आंखों को स्क्रीन से आराम देने के लिए, व्यायाम करने के लिए और अपनी आँखों का ख्याल रखने के लिए कहेंगे - वे आपको काम न करने की भी सिफारिश करेंगे.

लोग अक्सर इस सलाह की अवहेलना करते हैं, और फिर वे मेरे पास आते हैं और फिर मैं उन्हें चश्मा पहनने की सलाह देती हूँ. लेकिन बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में ही इस पूरी स्थिति को रोका जा सकता था. हालांकि, एक मानव प्रकृति की खासियत यह है कि रोकथाम में संलग्न होने की तुलना में उन्हें मौजूदा समस्या का इलाज करना आसान लगता है.



इसका समाधान यूरोप से आया है.

दुर्भाग्य से, इस तरह का व्यवहार सभी लोगों के लिए आम बात है, न कि केवल मेरे रोगियों के लिए. सौभाग्य से, हाल ही में एक नया यूरोपीय विकास नज़र आया है जो उन लोगों की भी दृष्टि बचाता है जो मॉनिटर या स्क्रीन के सामने रोजाना १२ घंटे से अधिक समय बिताते हैं.

आधुनिक जर्मन प्रयोगशालाओं और दुर्लभ जडीबुटियों और विभिन्न अर्कों के नए गुणों की खोज ने एक ख़ास उत्पाद बनाया है, जिसे मैंने अपने और अपने रोगियों के लिए खोजा था. यह एक इफ्लेक्टिव कैप्सूल iFocus है!

सच बताऊँ तो ये कैप्सूल मेरे रोगियों और मेरे लिए आंखों के व्यायामों और यहां तक कि कुछ मामलों में सर्जरी का भी एक बढ़िया विकल्प बन गई हैं.


नेत्र संबंधी सफलता!

मैंने एक कॉन्फ्रेंस में iFocus के बारे में सुना, इस कांफ्रेंस में मैं विज़न थेरेपी के नए तरीकों के बारे में जानने के लिए नियमित रूप से जाती हूँ. मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि इसके सक्रिय तत्वों के संयोजन में ल्यूटिन नामक घटक होता है. आइये मैं आपको अच्छे से समझाती हूँ.

इससे बने ल्यूटिन और ज़ेक्सैन्थिन ऑयबॉल के तंत्रिका अंगरखा के केंद्र में स्थित एक पीले रंग के स्पॉट के मुख्य पिगमेंट्स हैं. यह क्षेत्र दृश्यता की गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार होता है. ल्यूटिन और ज़ेक्सैंथिन ल्युमिनस फ्लक्स के सबसे हानिकारक नीले हिस्से को अवशोषित कर लेते हैं.

जब किरणें रेटिना की नाजुक संरचनाओं को भेदने का कार्य करती हैं तो ये घटक प्रकाश के विनाशकारी प्रभाव को बेअसर करते हैं. पिछली शताब्दी के अध्ययनों से पता चला है कि ल्यूटिन की कमी से धीरे-धीरे दृष्टि में खराबी आने लगती है.

इसलिए जब मैंने ल्यूटिन को iFocus के घटकों में देखा, तो मैंने महसूस किया कि यह उपाय वास्तव में लोगों को धीरे-धीरे बिगड़ने वाली दृष्टि की समस्याओं के साथ-साथ दृष्टि हानि से भी बचा सकता है.


iFocus

भारत में प्रमाणित.

iFocus को पिछले साल सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया था, और जब मैं सोचती हूँ कि हमारे देश में यह उत्पाद कितने वर्षों में बाज़ार में नज़र आएगा तो मुझे केवल निराशा ही नज़र आती है. लेकिन मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब इस उत्पाद ने भारत के प्रमाणीकरण के चरणों पर पारित कर दिया और यहां तक कि बिक्री के लिए भी बाज़ार में आ गया! लेकिन इसका एकमात्र दोष यह है कि iFocus को फार्मेसियों में बेचा नहीं जाता है, लेकिन मैं कंपनी की एक आधिकारिक साइट खोजने में कामयाब रही जो इस कैप्सूल को ऑनलाइन बेचता है.

मैं एक दवाओं से संबधित पेशेवर हूँ, और अब मैं समझती हूँ कि इन दवाओं को ऑनलाइन क्यों बेचा जाता है. बात यह है, फार्मेसियों में हमेशा व्यापारिक मार्जिन होता है. मुझे लगता है कि चूंकि यह विदेश में उत्पादित एक विदेशी उपचार है, इसलिए इसका मार्कअप ५०% से भी अधिक है. इसलिए मैं बहुत खुश हूं कि एक आधिकारिक वेबसाइट है जहां मैं का ऑर्डर दे सकती हूँ और मैं अपने मरीजों को भी इसका लिंक देती हूँ जिससे वे भी इसके फ़ायदों का लाभ ले सकें.

हमारे पास अपने नागरिकों की दृष्टि की समस्याओं को रोकने का एक मौका है, और यह मौका iFocus है जिसे इस साइट पर ऑर्डर किया जा सकता है, होम डिलीवरी की सुविधा के साथ.